Swami Vivekananda: काशी में मृत्यु का आभास होने पर लिया था बड़ा फैसला, जानिए स्वामी विवेकानंद से जुड़ी ये रोचक बातें

 आज स्वामी विवेकानंद की जयंती है। स्वामी विवेकानंद के ज्ञान, आत्मसात और अमेरिका में आयोजित धर्म संसद में उनके भाषण को हर कोई जानता है और उसकी प्रशंसा करता है। उन्होंने पूरे विश्व को हिंदुत्व और आध्यात्म का पाठ पढ़ाया। देश के युवाओं को सफलता का मूल मंत्र दिया लेकिन 39 साल की अल्प आयु में अपना जीवन त्याग देने वाले इस आध्यात्म गुरु के बारे में कई बातें आप नहीं जानते होंगे। 

Swami Vivekananda: काशी में मृत्यु का आभास होने पर लिया था बड़ा फैसला, जानिए स्वामी विवेकानंद से जुड़ी ये रोचक बातें


उन्होंने अपनी मौत से पहले एलटी कॉलेज परिसर के गोपाल लाल विला में प्रवास किया था। यहां स्वामी विवेकानंद जी ने अपने प्रवास के दौरान सात पत्र लिखे थे। इन पत्रों में कई हैरान कर देने वाली बातों का जिक्र है। वहीं इतिहास में उनके भाषण, वाद-विवाद और कई रोचक कहानियां दर्ज हो गई हैं, जिनके बारे में जान स्वामी विवेकानंद की महानता और उनके गुणों को आप भी अपनाना चाहेंगे। चलिए जानते हैं स्वामी विवेकानंद से जुड़े रोचक किस्सों के बारे में।

स्वामी विवेकानंद को मृत्यु का हो गया था आभास 


अपने पत्र में स्वामी विवेकानंद ने हैरान करने वाले सच का जिक्र किया है कि जब वह काशी में थे तो उन्होंने ये आभास हो गया था कि अब उनकी मृत्यु होने वाली है। वह अपने जीवनकाल में पांच बार काशी गए थे। लेकिन अपनी मृत्यु का आभास होने के बाद ये उनकी आखिरी काशी यात्रा थी।

 इसके बाद 4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद महासमाधि में लीन हो गए। जब उनका निधन हुआ तो विवेकानंद जी 39 वर्ष पांच माह, 24 दिन के थे। इसी वर्ष वह बनारस गए। एक माह वहीं ठहरे और बीमार होने के कारण स्वास्थ्य लाभ लिया। इस दौरान स्वामी विवेकानंद ने जो निर्णय लिया वह भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना के तौर पर दर्ज हो गई।

मृत्यु से पहले शिकागो जाने का निर्णय


स्वामी विवेकानंद ने मृत्यु का आभास होने के बाद दो निर्णय लिए थे। जिसमें से एक बेहद कठोर था। काशी में भ्रमण के दौरान ही उन्होंने शिकागो जाने का निर्णय लिया, जहां धर्म संसद में उनका भाषण एक ऐतिहासिक घटना बन गई। वहीं उन्होंने प्रतिज्ञा की कि वह मंत्र या साधयामि यानी आदर्श की उपलब्धि करेंगे, अगर ऐसा नहीं कर सके तो देह का ही नाश कर देंगे।

बौद्ध धर्म का ज्ञान


स्वामी विवेकानंद को जीवन के आखिरी दिनों में बौद्ध धर्म का भी ज्ञान हुआ, जिसके बारे में उन्होंने अपने पत्र में लिखा है। ये पत्र स्वामी स्वरूपानंद को लिखे गए थे। स्वामी विवेकानंद ने अपने पत्र में लिखा कि बौद्धों ने शैवों के तीर्थ स्थल को लेने का प्रयास किया लेकिन असफल होने पर उन्हीं के नजदीक नए स्थान बना लिए। जैसे बोधगया, सारनाथ आदि।


अपना आखिरी पत्र स्वामी विवेकानंद जी ने 24 फरवरी को ब्रह्मानंद को लिखा था। जिसमें उन्होंने पत्र का जवाब न देने को लेकर नाराजगी जताई थी और लिखा था। बाद में 4 जुलाई 1904 को वे महासमाधि में लीन हो गए। 

विवेकानंद ने गोरक्षक से पूछे कई मुश्किल सवाल


एक बार स्वामी विवेकानंद और गोरक्षक के बीत संवाद हुआ। गोरक्षक ने साधु-संयासी जैसे कपड़े पहने थे। गोरक्षक ने स्वामी विवेकानंद जी से मुलाकात की तो, उन्होंने आने का उद्देश्य पूछा। गौ प्रचारक ने कहा कि हम देश की गौ माताओं को कसाइयों के हाथों से बचाते हैं। स्थान-स्थान पर गोशालाएं स्थापित करके बीमार, कमजोर और कसाइयों से मोल ली हुई गौ माताओं को पालते हैं। इस पर विवेकानंद जी ने पूछा कि आपकी सभा की आमदनी का जरिया क्या है? प्रचारक ने कहा- आप जैसे महापुरुषों की कृपा से जो मिलता है, उससे सभा चलती है।

विवेकानंद ने मध्य भारत में पड़े अकाल का जिक्र करते हुए कहा कि 9 लाख लोग भूखे हैं, उनके लिए कोई सहायता का काम करते हैं तो गौरक्षक ने सिर्फ गौ माताओं की रक्षा की बात करते हुए साफ इनकार कर दिया। फिर गौरक्षक ने कहा कि ये उन लोगों के कर्मों का फल है। पाप के कारण अकाल पड़ा। 

विवेकानंद ने गौ प्रचारक के इस तर्क पर जवाब दिया कि इंसान के पाप के कारण अकाल पड़ा तो गायों के कर्मों के कारण वह कसाई के पास नहीं पहुंच सकती। उन्होंने आगे कहा कि 'जो सभा-समिति इंसानों से सहानुभूति नहीं रखती, भाइयों को भूखा मरते देख एक मुट्ठी अनाज तक नहीं दे सकती, लेकिन पशु-पक्षियों के लिए बड़े पैमाने पर अन्न वितरण करती है, उस सभा-समिति के साथ मैं जरा भी सहानुभूति नही रखता हूं।'


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